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<poem>जग उठे भाग्य अग-जग के, परम आनन्द है छाया।अब तो जागे भाग हमारे, हम पै टूठि ग‌ए भगवान। टूठि ग‌ए भगवान श्याम की अह्लादिनी राधा-प्रकट का काल शुभ आया॥ हम पै रीझि ग‌ए भगवान॥
बज उठीं देवकुंवरि-दुन्दुभियाँ, गान करने लगे किंनरजनम सुनत रति बाढ़ी, सुर लगे पुष्प बरसाने अमित आनन्द उर में भर सजि सुठि साज, सँवारत दाढ़ी, नाचत-गावत आयौ ढाढ़ी, ग्वालिनी वेष धारणकर सुन्दरी चलीं सुर करतौ जै-जैकार॥-जाया१।(अब तो०)
चले भाग्य हमारे कुंवरि जा‌ई, भ‌ई आज हमरी मनभा‌ई। बहुत दिनन की आस पुरा‌ई जीवन की सब ग्वाल नरआस पुरा‌ई कहत पुकार-नारी वृद्धपुकार॥-बालक सुसज्जित हो; देख शोभा परम, सहमे देव-दम्पति सुलज्जित हो, प्रेम के राज्य पावन में हु‌आ जो आज मन भाया२।(अब तो०)
यशोदा-नन्द परमानन्द पा अति हो उठे विह्वलबेटा, चले ले भेंट अति अनुपमबेटी, खिल उठे हृदय-पंकज-दलबहू, लुगा‌ई, लला थे गोद जननी के रुके न घर, प्रफुल्लित थी कलित काया३।आ‌ए हरषा‌ई। देत असीसें करत बड़ा‌ई, जी भर बारंबार॥-(अब तो०)
ऋषीजुग-मुनि हु‌ए हर्षितजुग जीवौ कुंवरि प्यारी, जो बने थे व्रज अचल सुहाग मिलै सुख-मधुर गोपी,झारी। फलित होता मनोरथ जान उनकी देह है ओपी हौ दो‌उन कुल की उजियारी, हु‌आ सब ओर जयकारा, मिट गयी सब मलिन माया४। कीरति बढ़ै अपार॥-(अब तो०)
स्वामी मिलै नंद कौ लाला,
रूप-गुननि में सब तें आला।
पहिरैं गुंजा-मोती माला,
सोभा कौ सिंगार॥-(अब तो०)
 
अग-जग सब ही कौं सुख देवै,
का‌ऊ तें न कबहुँ कछु लेवै।
तन-मन सों भरतारहि सेवै,
जानि-सार-कौ-सार॥-(अब तो०)
 
बिनय भरी सुनि ढाढ़ी बानी,
कीर्ति कृपामयि हिय हुलसानी।
दिखरायौ लाली-मुख रानी,
काजर-रेख सँवार॥-(अब तो०)
 
देखि कुँवारि, सो अति हरषायौ,
बोल्यौ-मैं सब ही कछु पायौ॥
बोल्यौ-मैं जीवन-फल पायो।
अब तो केवल लाली कौ दरसन नित भायौ,
सो मिलै भीख सरकार॥-(अब तो०)
 
बाँधि मँढ़ैया रहूँ यहीं पर,
होऊँ नित निहाल दरसन कर।
लाली कौ मुख मधुर मनोहर,
मिलै मोय अधिकार॥-(अब तो०)
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