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04:27, 31 मई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>
राधा ने दे दर्शन सुर-ऋषि को कृपया कर दिया निहाल।
करने लगे स्तवन गद्गद हो प्रेमपूर्ण-दृग मुनि तत्काल॥
महायोगमयि मायाधीश्वरि तेजपुंज जननी जय-जय।
माधुर्यामृतवर्षिणि कृष्णाकर्षिणि कृष्णात्मा जय-जय॥
परमेश्वरि रासेश्वरि नित्य-निकुंजेश्वरि अह्लादिनि जय-जय।
नित्याचिन्त्य अनन्त अनिर्वचनीय रूप-गुण-निधि जय-जय॥
</poem>
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