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05:01, 1 जून 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सरवर आलम राज़ 'सरवर'
|अनुवादक=
|संग्रह=एक पर्दा जो उठा / सरवर आलम राज़ 'सरवर'
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<poem>हमें ख़ुदा की क़सम! याद आइय़ाँ क्या क्या!
जफ़ा के भेस में वो आशनाइय़ाँ क्या क्या!
उम्मीद-ओ-आरज़ू जी में बसाइय़ाँ क्या क्या
फ़रेब इश्क़ में दानिस्ता ख़ाइयाँ क्या क्या!
ख़ुदी से कुछ न मिला, बे-ख़ुदी से कुछ न मिला
हरीम-ए-शौक़ में ज़ेहमत उठाइयाँ क्या क्या!
इन्हीं से याद है ताज़ा गये ज़माने की
हमें अज़ीज़ हैं तेरी जुदाइयाँ क्या क्या!
मियान-ए-काबा-ओ-बुतख़ाना गुम खड़े थे हम
नज़र जो ख़ुद पे पड़ी तुझ को पाइय़ाँ क्या क्या!
न दीद की कोई सूरत, न वस्ल की उम्मीद
फिर उस पे हैं मिरी बे-दस्त-ओ-पाइयाँ क्या क्या!
फ़रेब-ए-दश्त-ए-तमन्ना में मुझ को छोड़ गयीं
ख़याल-ओ-ख़्वाब की मेहशर नुमाइयाँ क्या क्या!
न तेरी दोस्ती अच्छी, न दुश्मनी अच्छी
बना रख़्ख़ी हैं ये तू ने ख़ुदाइयाँ क्या क्या!
मक़ाम-ए-इश्क़ में ‘सरवर,तुझे भी ले डूबीं
तिरी अना ये तिरी ख़ुद-नुमाइयाँ क्या क्या!
</poem>