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|रचनाकार=पूर्णिमा वर्मन
}}
[[Category:गीत]]{{KKCatGeet}}<poem>जीवन की आपाधापी में<br>खोया खोया मन लगता है<br>बड़ा अकेलापन <br>लगता है<br>दौड़ बड़ी है समय बहुत कम<br>हार जीत के सारे मौसम<br>कहाँ ढूंढ पाएँगे उसको<br>जिसमें -<br>अपनापन लगता है<br>चैन कहाँ अब नींद कहाँ है<br>बेचैनी की यह दुनिया है<br>मर खप कर के-<br>जितना जोड़ा<br>कितना भी हो कम लगता है<br>सफलताओं का नया नियम है<br>न्यायमूर्ति की जेब गरम है<br>झूठ बढ़ रहा-<br>ऐसा हर पल<br>सच में बौनापन लगता है<br>खून ख़राबा मारा मारी<br>कहाँ जाए जनता बेचारी<br>आतंकों में-<br>शांति खोजना<br>केवल पागलपन लगता है<br><br/poem>
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