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17:37, 29 जून 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>
हाथी खड़ा नदी के तट पर,
जाना था उस पार|
कश्ती वाला नहीं हुआ ले ,
जाने को तैयार|
इस पर तभी एक मेंढ़क ने,
दरिया दिली दिखाई|
बोला चिंतित क्यों होते हो,
प्यारे हाथी भाई|
बिठा पीठ पर तुमको अपनी,
नदिया पार कराऊं|
कठिन समय में मदद करुं मैं ,
मेंढक धर्म निभाऊं|
प्रोत्साहन ने मेंढक जी के,
हाथी को उकसाया|
पैदल चलकर पार नदी वह ,
चटपट ही कर आया|
छोटे छोटे लोग बड़ों को,
भी हिम्मत दे जाते|
और कठिन से कठिन काम भी
पल मैं हल हो जाते|
</poem>