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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>
मां बोली सूरज से बेटे,सुबह हुई तुम अब तक सोये|
देख रही हूं कई दिनों से,रहते हो तुम खोये खोये|

जब जाते हो सुबह काम पर,डरे डरे से तुम रहते हो|
क्या है बोलो कष्ट तुम्हें प्रिय,साफ साफ क्यों रहते हो|

सूरज बोला सुबह सुबह ही, कोहरा मुझे ढांप लेता है|
निकल सकूं कैसे चंगुल से,कोई नहीं साथ देता है|

मां बोली हे पुत्र तुम्हारा ,कोहरा कब है क्या कर पाया|
उसके झूठे चक्रव्यूह को ,काट सदा तू बाहर आया|

कवि कोविद बच्चे बूढ़े तक, लेते सदा नाम हैं तेरा|
कहते हैं सूरज आया तो, भाग गया है दूर अंधॆरा|

निश्चित होकर कूद जंग में,विजय सदा तेरी ही होगी|
तेरे आगे अंधकार या ,कोहरे की न कभी चलेगी|
</poem>
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