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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>

दिल्ली जाकर अब हम तो,
अपनी सरकार बनायेंगे|
भरत देश के बालक हैं हम,
भारत देश चलायेंगे|

जब अपनी सरकार बनेगी,
ऐसा अलख जगायेंगे|
भय और भूख‌ मिटेगी पल मॆं,
भ्रष्टाचार हटायेंगे|

अब आतंकी सीमाओं से,
भीतर न घुस पायेंगे|
यदि घुसे चोरी चोरी तो,
सारे मारे जायेंगे|

स्वच्छ प्रशासन देंगे सबको,
बिजली घर घर में होगी|
बिना कटोती मिलेगी सबको,
यह करके दिखलायेंगे|

त्राहि त्राहि भी अब पानी की,
किसी गांव में न होगी|
सारे शहर और कस्बों को,
हम पानी पिलवायेंगे|

रिश्वत ,घूस कमीशन लेता,
अगर कोई भी मिलता है|
बीच सड़क या चौराहे पर,
हम फाँसी लटकायेंगे|

डर के मारे भूत भागते,
ऐसा लिखा किताबों में|
यही व्यवस्था प्रजातंत्र में,
हम करके दिखलायेंगे|

तस्कर डाकू राजनीति में,
अब घुस भी न पायेंगे|
यदि आ गये चोरी से तो,
उनको मार भगायेंगे|

बच्चों के द्वारा बच्चों की,
और बच्चों की ही खातिर|
दिल्ली में लंबे अर्से तक,
हम सरकार चलायेंगे|
</poem>
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