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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>
जिस दिन होना थी लड्डू की बर्फीजी से शादी,
बर्फी बहुत कुरूप किसी ने झूठी बात उड़ा दी|

गुस्से के मारे लड्डूजी जोरों से चिल्लाये|
बिना किसी से पूँछतांछ वापस बारात ले आये|

लड्डू के दादा रसगुल्ला बर्फी के घर आये|
बर्फीजी को देख सामने मन ही मन मुस्काये|

बर्फी तो इतनी सुंदर थी जैसे कोई परी हो|
पंख लगाकर आसमान से अभी अभी उतरी हो|

रसगुल्लाजी फिदा हो गये उस सुंदर बर्फी पर|
ब्याह कराकर उसको लाये वे चटपट अपने घर|

लड्डू क्वांरा बेचारा अब लड़ता रसगुल्ला से|
रसगुल्ला मुस्कराता रहता बिना किसी हल्ला के|

सुनी सुनाई बातों पर तुम कभी ध्यान मत देना|
क्या सच है क्या झूठ सुनिश्चित खुद जाकर‌ कर लेना|</poem>
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