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18:24, 29 जून 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=
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{{KKCatBaalKavita}}
<poem>सुबह ‘चार’ पर मुर्गे उठकर,
हर दिन बाँग लगाते थे|
सोने वाले इंसानों को,
“उठो उठो “चिल्लाते थे|
किंतु आजकल भोर हुये,
आवाज़ नहीं ये आती है|
लगता है कि अब मुर्गों की,
नींद नहीं खुल पाती है|
मुर्गों के घर चलकर उनको,
हम मोबाईल दे आयें|
और अलार्म है, कैसे भरना,
उनको समझाकर आयें|
चार बजे का लगा अलार्म,
मुर्गे जब उठ जायेंगे|
कुकड़ूं कूं की बांग लगेगी,
तो हम भी जग जायेंगे|
मुन्नूजी ने इसी बात पर,
पी. ए.को बुलवाया है|
दस हज़ार मोबाईल लेने,
का आर्डर करवाया है|
</poem>