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07:50, 1 जुलाई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKLokRachna
|भाषा=मैथिली
|रचनाकार=अज्ञात
|संग्रह= बियाह सँ द्विरागमन धरिक गीत / मैथिली लोकगीत संग्रह
}}
{{KKCatMaithiliRachna}}
<poem>सूतल छलिऐ हे प्रभु, एके रे पलंग पर, हार मोरा गेलै हेराय हे
सोहावन लागे
नहि घर सासु हे प्रभु, नहि घर ननदि, हार मोरा गेल हेराय हे
सोहावन लागे
कथीक हार हे धनि, कथीमे गांथल, कहमहि गेल हेराय हे
सोहावन लागे
सोनेकेर हार हे प्रभु, रेशम डोरी गांथल, पलंगा पर गेलै हेराय हे
सोहावन लागे
जयबै बंगला देश, बजयबै सोनार के, हार अहाँक देब पहिराय हे
सोहावन लागे
</poem>