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17:00, 9 जुलाई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>आरति श्रीवसुदेव-तनय की।
नन्दकुमार कृष्ण रसमय की॥
षडैश्वर्यमय पुरुष परात्पर,
मायापति महान्, मायापर,
विश्वातीत विश्व, विश्वभर,
चिदानन्द-बपु इच्छामय की।
आरति श्रीवसुदेव-तनय की॥
अविनाशी, अज, अखिल भुवनपति,
आदि-अन्त-विरहित अविगत-गति,
सेवत सतत संत निर्मल-मति,
दीन-शरण्य विशद-आशय की।
आरति श्रीवसुदेव-तनय की॥
असुरोद्धारक दुष्कृतिनाशक,
स्थापक धर्म, अधर्म-विनाशक,
सदाचार सद्भाव विकाशक
गो-द्विज-रक्षक महिमामय की।
आरति श्रीवसुदेव-तनय की॥
पार्थ-सारथी गीता-गायक,
ज्ञान भक्ति सत्कर्म विधायक,
लोक-संग्रही, लोक-सुनायक,
स्रष्टा, पालक स्वयं प्रलय की।
आरति श्रीवसुदेव-तनय की॥
मथुरा कारागार धन्य कर,
प्रकटे चार भुजा आयुध-धर,
देवकि श्रीवसुदेव सुखाकर,
सहज सुहृद, अनुकम्पामय की।
आरति श्रीवसुदेव-तनय की॥
ब्रज पधार, कर लीला मञ्जुल,
नन्द-यशोदा-सुखकर सुविमल,
ब्रज-संरक्षक अमित शौर्य-बल,
शुचि सुषमा श्रीनन्दालय की।
आरति श्रीवसुदेव-तनय की॥
परम मधुर रसराज रसिकवर,
ललित त्रिभंग-मधुर मुरलीधर,
गोपी-गो-गोपाल-सुहृदवर,
अमल असीम प्रेम आलय की।
आरति श्रीवसुदेव-तनय की॥
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