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17:12, 9 जुलाई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>जय नँद-नंदन प्रेम-बिवर्धन सुषमा-सागर नागर स्याम।
जय कांता-पट-कांति-कलेवर मन्मथ-मन्मथ रूप ललाम॥
जय गोपीजन-मन-हर मोहन राधा-बल्लभ नव-घनरूप।
जय रस-सुधा-सिंधु सुचि उछलित रास-रसेस्वर रसिक अनूप॥
जय मुरली-धर अधर गान-रत, जय गिरिवर-धर, जय गोपाल।
मग जोहत बीतत पल जुग सम, दै दरसन अब करौ निहाल॥
</poem>