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बारहमासा / भिखारी ठाकुर

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कहाँ जइबऽ भइया ? लगावऽ पार नइयाआवेला आसाढ़ मास, तूँ मोर दुख देखि ल नेतर से बटोहिया।सुनऽ हो गोसइयाँलागेला अधिक आस, परत बानी पइयाँ, रचि-रचि कहिहऽ बिपतियाँ बटोहिया।छोडि़ कर घरवा बरखा में, बीच महधारवा में, पियवा बहरवा में गइलन बटोहिया।जइबऽ तूँ ओही देस, देखि लऽ नीके कलेस, ईहे सब हलिया सुनइहऽ बटोहिया।नइहर ईयवा, तेयागि देलन पियवा, असमन जनिहऽ जे धियवा बटोहिया।कइसे के कहीं हम, नइखे धरात दम, सरिसो फुलात बाटै आँखि मे बटोहिया।कहत ‘भिखारी’ नीके मन में बिचारि देखऽ, चतुर से बहुत का कही हो पिया रहितन पासवा बटोहिया।
सुंदरी:पिया अइतन बुनिया में,राखि लिहतन दुनिया में,अखरेला अधिका सवनवाँ बटोहिया।
करिया ना गोर बाटे, लामा नाही हउवन नाटे, मझिला जवान साम सुन्दर बटोहिया।घुठी प ले धोती कोर, नकिया सुगा के ठोर, सिर पर टोपी, छाती चाकर बटोहिया।पिया के सकल के तूँ मन में नकल लिखऽ, हुलिया के पुलिया बनाई लऽ बटोहिया।आवेला आसाढ़ मास, लागेला अधिक आस, बरखा में पिया रहितन बटोहिया।पिया अइतन बुनिया में, राखि लिहतन दुनिया में, अखड़ेला अधिका सवनावाँ बटोहिया।आई जब मास भादों, सभे खेली दही-कादो, कृस्न के जनम बीती असहीं बटोहिया। आसिन महीनवाँ के, कड़ा घाम दिनवाँ के, लूकवा समानवाँ बुझाला हो बटोहिया। कातिक के मासवा में, पियऊ का फाँसवा में, हाड़ में से रसवा चुअत बा बटोहिया। अगहन-पूस मासे, दुख कहीं केकरा से ? बनवाँ सरिस बा भवनवाँ बटोहिया। मास आई बाघवा, कँपावे लागी माघवा, त हाड़वा में जाड़वा समाई हो बटोहिया। पलंग बा सूनवाँ, का कइली अयगुनवाँ से, भारी ह महिनवाँ फगुनवाँ बटोहिया। अबीर के घोरि-घोरि, सब लोग खेली होरी , रँगवा में भँगवा परल हो बटोहिया। कोइलि के मीठी बोली, लागेला करेजे गोली, पिया बिनु भावे ना चइतवा बटोहिया। चढ़ी बइसाख जब, लगन पहुँची तब, जेठवा दबाई हमें हेठवा बटोहिया। मंगल करी कलोल, घरे-घरे बाजी ढोल, कहत ‘भिखारी’ खोजऽ पिया के बटोहिया।
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