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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>सहित सहस्र चतुर्दश राक्षसगण के, जो थे पापाचार।
धर्मद्वेषी खर-दूषण का महासमर में कर संहार॥

बैठे रामभद्र, मुनियों ने आकर किया समुद सत्कार।
परम प्रशंसा कर सब करने लगे चतुर्दिक जय-जयकार॥

लगे बजाने देव दुन्दुभी अन्तरिक्ष में बारबार।
रामचन्द्र का अद्भुत अत्याश्चर्यपूर्ण यह कर्म निहार॥
</poem>
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