गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
उस क़ादरे-मुतलक़ से बग़ावत भी बहुत की / ‘अना’ क़ासमी
15 bytes added
,
10:22, 16 जुलाई 2014
मैं ही न सुधरने पे बज़िद था मेरे मौला
तूने तो मिरे साथ रियायत भी बहुत की
<
/
poem>
{{KKMeaning}}
वीरेन्द्र खरे अकेला
265
edits