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सावन की गंगा / बुद्धिनाथ मिश्र
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20:21, 19 जुलाई 2014
<poem>
सावन की गंगा जैसी
गदरायी
गदराई
तेरी देह ।
बिन बरसे न रहेंगे अब
ये काले-काले मेघ ।
अनिल जनविजय
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