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सुधियाँ गुमनाम / रमेश रंजक
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13:27, 20 जुलाई 2014
नभ दृग में मोती झलका
सिमट गया सन्ध्या सिन्दूर
दिन की
अभिव्यक्ति पर लगा अनबूझी रात का
विराम !
</poem>
अनिल जनविजय
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