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दिल्ली की तस्वीर / रमेश रंजक
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05:00, 11 अगस्त 2014
अन्धा है जागरण यहाँ का
घने धुँधलके में डूबी हैं सीमाएँ परिवेश की
यह महान नगरी है मेरे देश की
है तो राजनीति की पुस्तक
उल्टा है व्याकरण यहाँ का
शब्द-शब्द से फूट रही है गन्ध विषैले द्वेष की
यह महान नगरी है मेरे देश की
धूप बड़ी बेशरम यहाँ की
अनिल जनविजय
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