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फिर से शहनाइयाँ, शामियाने में हैं / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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11:25, 16 अगस्त 2014
रात भर मस्तियाँ, शामियाने में हैं
वक़्त
-ए-रुख़सत
है
,
अब
दुल्हन हो
जा
रही है
बिदा
दुल्हन
चारसू,
हर तरफ़
सिसकियाँ, शामियाने में हैं
ये छुड़ाता है घर, गाँव, सखियाँ 'रक़ीब'
SATISH SHUKLA
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