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|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
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|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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<poem>
(राग मालगुञ्जी-ताल एकताल)
मन बन मधुप हरिपद-सरोरुह लीन हो।
निश्चिन्त कर रस-पान भय-भ्रम हीन हो॥-टेक॥
तू भूलकर सारे जगतकी भावना,
रह मस्त आठों पहर, मत यों दीन हो॥-मन०॥
तू गुनगुनाहट छोड़ बाहरकी सभी,
बस रामगुन गुंजार कर मधु पीन हो॥-मन०॥
तू छोड़ दे अब जहँ-तहाँका भटकना,
तू हरि चरण आश्रित यथा जल-मीन हो॥-मन०॥
</poem>