1,332 bytes added,
08:16, 26 अगस्त 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
|अनुवादक=
|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
(राग बसन्त-तीन ताल)
सुनावौ कबि! (तुम) रचना ऐसी आज।
(जातें) होय समरपित पूरन मति-मन प्रिय-पद, सजि सुचि सुंदर साज॥
अनिमिष निरखत रहैं नैन नित प्रियतम-मुख-विधु-रूप ललाम।
बानी नित नव-नव उछाह सौं करती रहै गान गुन-नाम॥
पीवत रहैं अतृप्त मधुर मुरली-धुनि-सुधा, नाम-गुन कान।
प्रियतम-अंग-सुगंध मधुरतम सूँघत रहै निरंतर घ्रान॥
प्रिय-प्रसाद-रस रसमय रसना चाखत रहै परम अबिराम।
प्रिय के अँग-परसन कौ सुख नित त्वक लेत रहै रस-धाम॥
</poem>