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<poem>
तू अगर फ़ौज में भर्ती हो जाए
तो यक़ीन है कि सारी तोपें
पिचकारियों में बदल जाएँगी

फिर उनसे गोला-बारूद नहीं दाग़ा जाएगा
रंग बरसाए जाएंगे

सरहदों के उस पार
जहाँ गिरेंगे तेरे रंगीले गुब्बारे
ख़ून ख़राबे की आदी हो चुकी धरती
महसूस करेगी अपना नया जन्म होते हुए
फिर दहशत वहाँ कभी नहीं लौटेगी

अब तक के इतिहासों में दर्ज है
पड़ोसी मुल्कों के बीच अक्सर होती
शांति वार्ताएँ,
अक्सर होते शिखर सम्मेलन
और इन महज़ दिखावटी रस्मों के पीछे
छुपा होता है युद्धों का निर्मम चेहरा अक्सर
तंग आ चुकी है दुनिया इस दोगलेपन से
उसे अब और जंग नहीं
तेरे उत्सवदार रंग चाहिये

अब जो इतिहास बने
उसमें ऐसे हुक्मरान हों
जो सरहदों के पार की जनता को भी
अपनी अवाम समझें

तू अगर फ़ौज में भर्ती हो जाए
तो यक़ीन है
सीमाओं पर लगी
कंटीले तारों की बाड़
काट दी जाएगी
और खोल दी जाएँगी तमाम सरहदें


फिर यह पृथ्वी
फिज़ूल टुकड़ों में बँटी नहीं मिलेगी
तब्दील हो चुकी होगी
एक घर-
एक आँगन में.
</poem>
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