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14:01, 1 सितम्बर 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अजेय
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<poem>
+10c
भीड़ कभी छितराती है
कभी इकट्ठी हो जाती है
तिकोने मैदान पर विभिन्न रंगों के चित्र उभरते हैं
एक दूसरे में घुलते हैं
स्पष्ट होते हैं
बिखर कर बदल जाते हैं
कभी नीली जीन्स की नदी सी एक
दूर नगर निगम के दफ्तर तक चली जाती है
पतली और पतली होती
जल पक्षियों से, डूबते, उतराते हैं
उस पर रंग बिरंगी टी-शर्ट्स और टोपियां
धूप सीधी सर पर है एकदम कड़क
और तापमान बढ़ा हुआ
</poem>