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14:03, 1 सितम्बर 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अजेय
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<poem>
+2 0c
बच्चे बड़े बड़े गुब्बारे ओढ़ रहे हैं
गोल लम्बूतरे
बड़ी-बड़ी गुलाबी कैंडीज़ में से झाँकता
एक मरियल काला बच्चा
मेरे पास आकर रोता है -
‘अंकल ले लो न, कोई भी नहीं ले रहा’
उसकी आंखें प्रोफेशनल हैं
फिर भी भीतर कुछ काँप सा जाता है
तापमान पहले से बढ़ गया है
</poem>