Changes

इस तरह बनना / प्रियदर्शन

2,765 bytes added, 07:23, 2 सितम्बर 2014
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रियदर्शन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatK...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रियदर्शन
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कुछ समय हमेशा पीछे छूट जाता है
सिर्फ़ तभी नहीं जब पत्ते झरते हैं
तब भी जब पत्ते बनते रहते हैं
एक छोटे से हरे विन्यास पर
उकेरी उनकी एक-एक महीन रेखा
न जाने कितने बिंदुओं को पीछे छोड़कर उभरती है
जब कभी किसी फुरसत में
या अनायास आए किसी अंतराल में
हम अपनी हथेलियों में थामते हैं
एक मुलायम मुस्कुराती पत्ती
जिसमें हमारे मासूम बचपन की
कोमलता और गंघ बसी होती है
तब हमें लगता है
कितना पीछे छूट गया है समय
लेकिन सच्चाई यही है कि
जब हम वह पत्ती थामते हैं
और पीछे की यात्रा नए सिरे से शुरू
करने के उल्लास से भर जाते हैं
तब भी कोई अनजान सी आरी
चुपचाप चलती रहती है हमारे वजूद पर
बहुत ध्यान से सुनने पर ही
समझ में आती है उसकी मद्धिम आवाज
जिसे हम कभी हवा की फुसफुसाहट, कभी पत्ती की सरसराहट और
कभी उड़ती-बैठती धूल का शोर समझ कर
नजरअंदाज करते हैं।
दरअसल कुछ न कुछ समय हमारे भीतर बनता भी जाता है छूटता भी जाता है
चाहें तो हम अपने-आप को बार-बार पहचान सकते हैं नए सिरे से
और समझ सकते हैं
यह समय नहीं है जो बनता और छूटता जा रहा है
यह हम हैं जो लगातार कुछ होने की प्रक्रिया में हैं-
कुछ जीता है हमारे भीतर कुछ मरता है
हमें हर पल कुछ नया करता है।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
1,983
edits