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राँची से दिल्ली : चौदह बरस बाद / प्रियदर्शन
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07:37, 2 सितम्बर 2014
बहुत आसान है इस सबके लिए इस महानगर को ज़िम्मेदार ठहरा देना
कह देना कि उसके ऑक्टोपसी पंजों ने पीछे
मु़ड़कर
मुड़कर
देखने की फुरसत नहीं दी
कि महानगर बडी से बडी कसमों को लील जाता है
लेकिन यह सच कम से कम अपने से नहीं छुपा पाऊंगा
Gayatri Gupta
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