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प्रिय गान नहीं गा सका तोये अनजान नदी की नावें</div>
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रचनाकार: [[त्रिलोचनधर्मवीर भारती]]
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<div style="border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; line-height: 0; margin: 0 auto; min-height: 590px; padding: 20px 20px 20px 20px; white-space: pre;"><div style="float:left; padding:0 25px 0 0">[[चित्र:Kk-poem-border-1.png|link=]]</div>
यदि मैं तुम्हारे प्रिय गान नहीं गा सका तोये अनजान नदी की नावेंमुझे तुम एक दिन छोड़ चले जाओगेजादू के-से पालउड़ातीआतीमंथर चाल।
एक बात जानता हूँ मैं कि तुम आदमी होनीलम पर किरनोंजैसे हूँ मैं जो कुछ हूँ तुम वैसे वही होकी साँझीअन्तर है तो भी बड़ी एकता हैएक न डोरीमन यह वह दोनों देखता हैएक न माँझी ,भूख प्यास से जो कभी कही कष्ट पाओगेफिर भी लाद निरन्तर लातीतो अपने से आदमी को ढूंढ़ सुना आओगेसेंदुर और प्रवाल!
प्यार का प्रवाह जब किसी दिन आता हैकुछ समीप कीआदमी समूह में अकेला अकुलाता हैकुछ सुदूर की,किसी को रहस्य सौंप देता हैकुछ चन्दन कीउसका रहस्य आप लेता हैऎसे क्षण प्यार कुछ कपूर की ही चर्चा करोगे और,अर्चा करोगे और सुनोगे सुनाओगेकुछ में गेरू, कुछ में रेशमकुछ में केवल जाल।
विघ्न से विरोध से कदापि नहीं भागोगेये अनजान नदी की नावेंविजय जादू के लिए सुख-सेज तुम त्यागोगेक्योंकि नाड़ियों में वही रक्त हैजो सदैव जीवनानुरक्त हैतुमको जिजीविषा उठाएगी, चलाएगी,बढ़ाएगी उसी का गुन गाओगे, गवाओगेसे पालउड़ातीआतीरचनाकाल : जनवरी, 1957, ’कवि’ में प्रकाशित मंथर चाल ।
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