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भरा-परा हमारा साहित्य इतिहास
परम्परावादिता का संत्रास
सीखने हेतु अनिवार्य ..छद्म काल तक ..
नवकाव्यवाद ! प्रगतिवाद !! नवचेतनावाद !!!
मात्र लेखनी में
कर्म तो वही प्रांजल ..
पिया देशान्तर की
अब क्यों करते चर्चा
इन वादिताओं से संज्ञान लेकर
नवल- धवल वाद बनाओ
क्यों अभी भी उलझा है ?वृथा से बढ़कर सोचना होगा !कॉर्पोरेट घराना बदल रहल ...
सामाजिक उत्तरदायित्व
जैसे गंभीर बिंदुओ पर सोच रहा
विस्फोटक पटाखा जलाया था
गुरूजी आत्मा से दुखी हो गए
हमने तो ऐसी शिक्षा नहीं दी थी ?
अपने अंदर की ज्योति से
अलख को जगमगाओं वत्स !!!!
उस समय मुझे अटपटा लगा था ..
अब बीमारियों ने घेर लिया
दर्द की समझ आ गयी है
हमारी समस्त जीवन लीला
हमारे गाँव की पाठशाला
दोनों सम्यक हो जाएगी. ..
जहां सब कुछ है ....
मध्यान्ह भोजन है ..मुफ्त की किताब है ..
गीत है संगीत है...
मतलब पढ़ाई छोड़कर सबकुछ है...
यही शिक्षा का स्तर है ..
हम सीसैट का प्रश्न भी ना समझ पाते...
जो बिहार ..बुद्ध विहार..जैन आचार
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