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झूठ माहात्म्य / काका हाथरसी

238 bytes added, 06:10, 18 सितम्बर 2014
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|रचनाकार=काका हाथरसी
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|संग्रह=काका के व्यंग्य बाण / काका हाथरसी
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झूठ बराबर तप नहीं, साँच बराबर पाप
 
जाके हिरदे साँच है, बैठा-बैठा टाप
 
बैठा-बैठा टाप, देख लो लाला झूठा
 
'सत्यमेव जयते' को दिखला रहा अँगूठा
 
कहँ ‘काका ' कवि, इसके सिवा उपाय न दूजा
 
जैसा पाओ पात्र, करो वैसी ही पूजा
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