गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
जी में आया है, मुझे आज वो, कर जाने दे / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
2 bytes added
,
06:46, 26 सितम्बर 2014
दो घड़ी और ठहर, देख लूँ , चेहरा तेरा
नक्श का अक्श
अक्स आँखों से
, मेरे दिल में उतर जाने दे
जीते जी मार ही डाला है मुझे यारों ने
रूठे दिलबर को यक़ीनन ही मना लेगा 'रक़ीब'
फूटी तक़दीर तो एक बार संवर जाने दे
</poem>
SATISH SHUKLA
481
edits