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जी में आया है, मुझे आज वो, कर जाने दे / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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06:46, 26 सितम्बर 2014
दो घड़ी और ठहर, देख लूँ , चेहरा तेरा
नक्श का अक्श
अक्स आँखों से
, मेरे दिल में उतर जाने दे
जीते जी मार ही डाला है मुझे यारों ने
रूठे दिलबर को यक़ीनन ही मना लेगा 'रक़ीब'
फूटी तक़दीर तो एक बार संवर जाने दे
</poem>
SATISH SHUKLA
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