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पत्‍नी / कुमार मुकुल

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अंधड उखाड देते हैं उसकी चिनगारी को
चांदनी की बाबत

उसने कभी विचार ही नहीं किया

जैसे वह जानती नहीं

कि वह भी कोई शै है


उसे तो बस

तेज काटती हवाओं

और अंधडों में

चैन आता है

जो उसके बारहो मास बहते पसीने को

तो सुखाते ही हैं

वर्तमान की नुकीली मार को भी

उडा-उडा देते हैं


अंधडों में ही

एकाग्र हो पाती है वह

और लौट पाती है

स्मृतियों में


अंधड

उखाड देते हैं उसकी चिनगारी को

और धधकती हुई वह

अतीत की

सपाट छायाओं को

छू लेना चाहती है ।

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