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नख-शिख / मदन वात्स्यायन

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बेगहनों के तेरे गोरे अंग है और
बे-बेलबूटों की तेरी श्वेत साड़ी
चारों ओर उजले बादल हैं
और ग्लावा चमक रही है
</poem>
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