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नख-शिख / मदन वात्स्यायन
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19:04, 29 सितम्बर 2014
बेगहनों के तेरे गोरे अंग है और
बे-
बेलबूटों की तेरी श्वेत साड़ी
चारों ओर उजले बादल हैं
और ग्लावा चमक रही है
</poem>
अनिल जनविजय
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