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14:23, 30 सितम्बर 2014 {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह=परिदृश्य के भीतर / कुमार मुकुल }} {{KKCatKavita}} <poem>
एक चिडिया का बच्चा जब
सूरज की तपिश से जलने लगा
तो जाने क्या सूझी उसे
कि बुझा देने की नीयत से
सर उठाकर उसपर थूक दिया
अब सूरज की सेहत पर इसका क्या असर पडा
पता नहीं
पर उसके वंशधरों को यह नागवार गुजरी
सो अस्त्र-सश्त्र ले पड गये उसके पीछे
अब आफत की मारी वह नन्हीं सी जान
लगी भागने इसे लोक से उस लोक
उसे कौन शरण देगा
चांद तोर आपस में बतिया रहे हैं
कि इसे बस खुदा ही बचा सकता है
अब खुदा को कोई कहां ढूंढे
सबका ऐसा विश्वास है
कि चिडिया का बचना मुश्किल है
ग्रहों के कैमरे चिडिया पर नजर टिकाये हैं
कि चिडिया मरे कि एक
हेडलाइन न्यूज तैयार हो
जिसकी जगह अभी खाली है।
1988 , तसलीमा नसरीन के लिए
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