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रूप-वर्णन / सूरदास

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मैं बलि जाउँ दसन चमकनि की, बारौं तड़ितनि सावन ॥
 
मैं बलि जाउँ ललित ठोड़ी पर, बलि मोतिनि की माल ।
भाल-केसर-तिलक छबि पर, मदन-सर सत वारि ।
 
मनु चली बहि-सुधा-धारा, निरखि मन द्यौं वारि ॥