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अखबारों में / शशि पुरवार
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07:51, 10 अक्टूबर 2014
झोपड़ियों की चर्चा है
रक्षक
ही
भक्षक बन बैठे है
खुले आम दरबारों में।
कंकर फँसा निगाहों में
बनावटी है मीठी वाणी
उदासीनता
उदासीन
व्यवहारों में।
किस पतंग की डोर कटी है
Shashi Purwar
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