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सरे तन्हा जब-जब भी ईमान रोए / उषा यादव उषा
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07:53, 4 नवम्बर 2014
जो फ़ितरत ही यूँ ढाए ज़ुल्मों सितम तो
क्यों न सबेरे उषा
.
गान रोए
न लौटे किसी तौर अब वो मुसाफ़िर
अनिल जनविजय
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