<poem>
वह जन-जीवन द्रष्टा-श्रष्टा,
युग का निर्माता जन कवि है !
जो महाप्रलय की छाती पर, निर्माण गीत को गाता है,
क्रूर नियति भी रोक न पायी जिसका अपने अवगुम्फन,
द्वापर, त्रेता, सतयुग को सतयुग, त्रेता, द्वापर कर डाला,
वर्तमान की पृष्टभूमि पर, भविष्य को पहले रच डाला !
बाल्मीकि, द्वैपायन, तुलसी,
कालिदास, केशव, भारवि है !
शिवराज भवानी को जिससे प्रेरणा मिली, दृढ़-शक्ति मिली,
तलवारों की झंकारो में जिसने कितने संगीत लिखे,
कायरता की कल्मषता की तब जली कालिमा मय होली,
रक्तिम रोली दे निकल पड़ी तब दीवानों की थी टोली !
जो स्वतन्त्रता का अनुगामी,
परवशता के ऊपर पवि है !
जिसने तिल-तिल कर रक्त दान, है संस्कृति का निर्माण किया,
वह कविर्मनीषी स्वायंम्भुव जगाती का नाट्य प्रणेता है,
जिसके भावों को चुरा प्रकृति,
रचती धरती की मृदु छवि है !
जिसकी स्मृति ने सदियों का इतिहास सँजोकर रक्खा है,