गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
धूमिल साँझ / किशोर काबरा
24 bytes added
,
10:16, 4 दिसम्बर 2014
{{KKRachna
|रचनाकार=किशोर काबरा
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैंने तो सोचा था - चलकर पा लूँगा मंज़िल की सीमा
इतनी लंबी राह कि थक कर चूर हो गया चलते-चलते।
पा लूँगा विश्राम ज़रा-सा
इतनी धूमिल साँझ कि मैं भी धूल हो गया ढलते-ढलते।
</poem>
Sharda suman
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader,
प्रबंधक
35,130
edits