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(एक)कहीं कोई संगति नहीं, बसंत नहीं फिर भी सड़के धूल भरी यात्रा में खोजती हुईं बहुत मुश्किल है अपने नहीं कहे को आवाज़ दे पानाछांह के लिए एक कोना
परिंदं भले होते हैंकोई रंग नहीं भरा गयावे उन अज्ञात रास्तों को आवाज़ देते हैं उस ख़ाली केनवास परजो छिपे होते हैघरों, जंगलों और भीतरवह चला गया बग़ैर जूतों के
हम उन बताई जगहों की ओर बढते उलझे पथिक लौट रहे हैंजिनकी सूचना मिलती है अप्रमाणित युद्धों घरों में उन बिखरावों में जो हमारे टूटे अनुभवों की दांस्तानां में भरी पड़ी दुबकी शांति के लिए
लेकिन यह प्रेम को आवाज़ देने जैसा नहीं है सारे पेड़ों ने कपड़े उतार लिए हैंअंतहीन खोहों से भरा है प्रेम और हम उनकी नग्नता में देखते हैंकैसे सारी चिड़ियां उनसे मिलने आती हैंअनगिनत बांबियों और घांसलों से इसका व्यक्त भी अव्यक्त ढंक लेती है अपने भारी भरकम थैली सरीखे गोल पेट कोऔर अव्यक्त भी व्यक्तकुछ अधपीली पपड़ायी पत्तियों के भीतर
बहुत मुश्किल है मैं अपने नहीं कहे को जानूं किसी दिन हमारी नींद में मैं एक विपरीत दिशा वाला व्यक्तिफड़फड़ाते हैं कुछ टूटे स्वप्नकहूं कि मेरी वह छिपी आवाज़ का प्रस्फुटनकविता की तरह है तोयह आवाज़ की तरह नहींऔर हम अपने चेहरों सेउस दबी पहचान की तरह हैउतार फेंकते हैं रात के सारे तज़र््ांमें
जो नहीं कहे से बाहर हैसिर्फ़ कोयले ही बिना रंगे रह गएयाने परिंदों की तरह जलने के रास्ते असंभव नहीं बाद
(दो)प्रेम ही बचा रहा तमाम नाक़ाम विचारों के बावजूद
जब मैं अपनी आवाज़ दोहराता हूं
ख़ासकर चीज़ों के रेशों, कोमल घासों,
प्रेम की अंतहीन सांसों और पत्तों पर बिछी बूंदों के साथ
या उन्हें लिए तो हर बार एक समुद्र का अंधेरा
छंट जाता है
एक मूर्ति अपने तराशे शिल्प से झांकती
खो जाती है पुनः नहीं रचे एक नए शिल्प की ओर
नहीं लिखी पंक्तियां लिख ली जाती है
जीवन के संकेत दोहराए जाने से हर चीज़ अपनी नग्नता मेंजिन्हें शायद कभी पहचान मिल सकेगी जितनी अस्पष्ट स्मृतियां अपना सच छोड़ जाती हैउनकी धंधलायी चमक से रगड़ खाती आवाजेंजैसे किसी वाद्य के तार लटके होपेड़ों परहवा उनसे बार-बार टकराती हैहम सुनते ये आकस्मिक संगीत लौटते हैं रोजमर्रा की गलियों में दोहराता हूं ख़ुद को संगीत, प्रेम और तुम्हेंताकि गुम होने से पहले लिपट सकूं भरसक.
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