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जो समय बीत गया / पाब्लो नेरूदा

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[[Category:स्पानी भाषा]]
 <poem>
मैं जो कुछ भी लिखता जाता था
 उस पर हँसी आती थी  
जगह-जगह वर्तनी के निशान लगाने पर
 
तमाम बड़े कवियों को
 इस पर मैं अपने को दुत्कारता ही था  
पूर्ण विराम लगाया तो पूरा पाप
 मैं महसूस करता  
और महसूस करता एक अधूरा पाप
 
जब लिखे पर अर्धविराम लगाता
 
विस्मयबोधक चिन्ह पर
 
या सेमिक़ॉलन पर
 
एहसास होता किसी आधे पाप का
 
और जैसे पूर्वजों के पापों का भी
 
वे मेरे लिखे को
 
तमाम चर्चों में गाड़ देते
 
ख़ास एक समय चुनकर
 
मेरे नामराशि वाले बन गए थे जो
 
तीस मार खाँ बनने लगे
 
वे सभी सुबह की मुर्गे की बांग से ही पहले
 
आख़िरकार डूबकर उठ गए संसार से
 ताल और कुएँ में डूबकर  पेरसे और इलियट के साथ  
इसी दौरान मैं फँसा उलटते-पलटते
 
उस पंचाग में
 
जिसे मेरे दादा-परदादा ने बनाया था कभी
 
रोज़-ब-रोज़ फ़ीका पड़ गया था वह
 
बिना किसी फूल को तलाशे हुए
 
जिसे शायद ही किसी ने तलाश किया हो
 
बिना कोई सितारा तलाशे आसमाँ में
 
घुप्प नहीं हो गया जो अंधेरे में
 
पूरी तरह से खोया मैं उसमें
 
रसायनों को पीकर
 
उस आसमाँ के साथ-साथ चलते हुए
 
जिसके लिए नहीं है कोई प्रतीक
 
कभी वापसी होगी मेरी
 
मेरे साथ होगा मेरा घोड़ा
 
तभी मैं धर दूंगा उन सबको चुपचाप
 
मैं रखूंगा निगाह जो बन रहे होंगे तीस मार खाँ
 
प्रगट हो चुके होंगे वे या नहीं
 
वे होंगे या काल्पनिक ही सही
 
वे चाहे घुस जाएँ किसी भी नए ग्रह में
 मैं जकडंगा उनको  
शिकंजे में अपने।
  '''अनुवाद : प्रमोद कौंसवाल</poem>
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