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मैं रहा विदेशों में खोया पथ-भूला सा
 
अन-खोला ही
 
वक्ष पर रहा लौह-कवच
 
बाहर के ह्रास लोभों लाभों से
 
हिय रहा अनाहत स्पन्दन सच,
 
ये प्राण रहे दुर्भेद्य अथक
 
आधुनिक मोह के अमित रूप अमिताभों से।
 
 
 
(अपूर्ण। सम्भावित रचनाकाल 1950-51। मुक्तिबोध रचनावली के दूसरे संस्करण में पहली बार प्रकाशित)
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