प्रिया सुमित,
आपको ऐसा क्यों लगता है की "कुछ करिए" में आपकी फालतू तारीफ़ है| आपने कार्य तो किया है| और प्रूफ़-रीडिंग भी की है| चाहे वो ख़ुद के जोड़े पन्नों की ही हो|
जहाँ तक मेरी बात है, भाषा का ज्ञान मुझे अधिक नहीं है| अपने तुच्छ ज्ञान के साथ मैं कुछ कार्य कराती हूँ तो प्रयास यही होता है कि "नहीं कराने से तो अच्छा है कि जितना मैं कर सकती हूँ उतना तो करूँ|" मैं आपकी तरह तीव्र नहीं हूँ, मुझे भाषा सीखने मैं समय लगता है, किंतु कोशिश करुँगी कि आगे से कोई गलती न हो|
१३:०९, १४ अप्रैल २००८ (UTC)
प्रिय सुमित जी,
आप हिन्दी प्रेमी हैं, हिन्दी के भविष्य को लेकर चिन्तित रहते हैं, प्रूफ़-रीडिंग को लेकर परेशान रहते हैं, कविता-कोश में महत्त्वपूर्ण योग दे रहे हैं, हम सब लोगों की ग़लतियाँ पकड़ कर हमें बताते हैं और मैं हमेशा आश्चर्यचकित होता हूँ, आपकी यह सक्रियता देख-देख कर। हमेशा सोचता हूँ-- देखो, कितना होनहार लड़का है। लेकिन भाई सुमित जी, कुछ बातें ऎसी भी हैं जिन्हें लेकर मुझे अब आपको टोकने की ज़रूरत आ पड़ी है। आपने आज ही जो चिट्ठी ललित जी को 'सदस्य वार्ता' के अन्तर्गत भेजी है, मुझे लगता है कि आप उसमें शालीनता की सीमाएँ पार कर गए हैं।