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चंचल न हूजै नाथ / केशवदास

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|रचनाकार=केशवदास
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चंचल न हूजै नाथ, अंचल न खैंची हाथ ,
सोवै नेक सारिकाऊ, सुकतौ सोवायो जू .
छल के निवास ऐसे वचन विलास सुनि,
सौंगुनो सुरत हू तें स्याम सुख पुओ जू .
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