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इब्ने-मरियम / कैफ़ी आज़मी

391 bytes removed, 06:26, 16 जनवरी 2015
|रचनाकार=कैफ़ी आज़मी
}}
<poem>
'''इब्ने-मरियम<ref>मरियम का बेटा अर्थात ईसा मसीह</ref>'''
तुम ख़ुदा हो <br>ख़ुदा के बेटे हो<br>या फ़क़त<ref>केवल</ref> अम्न<ref>शांति</ref> के पयंबर<ref>अवतार</ref> हो<br>या किसी का हसीं तख़य्युल<ref>सुन्दर कल्पना</ref> हो<br>जो भी हो मुझ को अच्छे लगते हो<br>जो भी हो मुझ को सच्चे लगते हो<br><br>
इस सितारे में जिस में सदियों से<br>झूठ और किज़्ब<ref>झूठ</ref> का अंधेरा है<br>इस सितारे में जिस को हर रुख़<ref>तरफ़</ref> से<br>रंगती सरहदों ने घेरा है<br><br>
इस सितारे में, न जिस की आबादी<br>अम्न बोती है जंग काटती है<br><br>
रात पीती है नूर मुखड़ों का<br>सुबह सीनों का ख़ून चाटती है<br><br>
तुम न होते तो जाने क्या होता<br>
तुम न होते तो इस सितारे में<br>देवता राक्षस ग़ुलाम इमाम<br>पारसा<ref>पवित्र</ref> रिंद<ref>शराबी</ref> रहबर<ref>मार्गदर्शक</ref> रहज़न<ref>लुटेरा</ref><br>बिरहमन शैख़ पादरी भिक्षु<br>सभी होते मगर हमारे लिये<br>कौन चढता ख़ुशी से सूली पर<br><br>
झोंपडों में घिरा ये वीराना<br>मछलियाँ दिन में सूख़ती हैं जहाँ<br>बिल्लियाँ दूर बैठी रहती हैं<br>और ख़ारिशज़दा से कुछ कुत्ते<br>लेटे रहते हैं बे-नियाज़ाना<ref>निश्चिंत</ref><br>दम मरोड़े के कोई सर कुचले<br>काटना क्या ये भोँकते भी नहीं<br><br>
और जब वो दहकता अंगारा<br>छन से सागर में डूब जाता है<br>तीरगी ओढ लेती है दुनिया<br>कश्तियाँ कुछ किनारे आती हैं<br>भांग गांजा चरस शराब अफ़ीम<br>जो भी लायें जहाँ से भी लायें<br>दौड़ते हैं इधर से कुछ साये<br>और सब कुछ उतार लाते हैं<br><br>
गाड़ी जाती है अदल<ref>न्याय</ref> की मीज़ान><br>जिस का हिस्सा उसी को मिलता है<br><br>
तुम यहाँ क्यों खड़े हो मुद्दत से<br><br>
ये तुम्हारी थकी-थकी भेड़ें<br>रात जिन को ज़मीं के सीने पर<br>सुबह होते उँडेल देती है<br>मंडियों दफ़्तरों मिलों की तरफ़<br>हाँक देती ढकेल देती है<br>रास्ते में ये रुक नहीं सकतीं<br>तोड़ के घुटने झुक नहीं सकतीं<br><br>
इन से तुम क्या तवक़्क़ो रखते हो<br>भेड़िया इन के साथ चलता है<br><br>
तकते रहते हो उस सड़क की तरफ़<br>दफ़्न जिस में कई कहानियाँ हैं<br>दफ़्न जिस में कई जवानियाँ हैं<br>जिस पे इक साथ भागी फिरती हैं<br>ख़ाली जेबें भी और तिजोरियाँ भी<br><br>
जाने किस का है इंतज़ार तुम्हें<br><br>
मुझ को देख़ो के मैं वही तो हूँ<br>जिस को कोड़ों की छाँव में दुनिया<br>बेचती भी ख़रीदती भी थी<br><br>
मुझ को देख़ो के मैं वही तो हूँ<br>जिस को खेतों में ऐसे बाँधा था<br>जैसे मैं उन का एक हिस्सा था<br>खेत बिकते तो मैं भी बिकता था<br><br>
मुझ को देख़ो के मैं वही तो हूँ<br>कुछ मशीनें बनाई जब मैंने<br>उन मशीनों के मालिकों ने मुझे<br>बे-झिझक उनमें ऐसे झौंक दिया<br>जैसे मैं कुछ नहीं हूँ ईंधन हूँ<br><br>
मुझ को देखो के मैं थका हारा<br>फिर रहा हूँ युगों से आवारा<br><br>
तुम यहाँ से हटो तो आज की रात<br>सो रहूँ मैं इसी चबूतरे पर<br><br>
तुम यहाँ से हटो ख़ुदा के लिये<br><br>
जाओ वो विएतनाम के जंगल<br>
उस के मस्लूब<ref>सूली पर चढ़ाए गए
</ref> शहर ज़ख़्मी गाँव<br>
जिन को इंजील<ref>बाइबल
</ref> पढ़ने वालों ने<br>रौंद डाला है फूँक डाला है<br><br> जाने कब से पुकारते हैं तुम्हें<br><br>
जाओ इक बार फिर हमारे लिये<br>तुम को चढ़ना पड़ेगा सूली पर<br><br><br>
{{KKMeaning}}
</poem>
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