गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
उससे कहना कि कमाई के न चक्कर में रहे / ‘अना’ क़ासमी
15 bytes added
,
13:51, 21 जनवरी 2015
ज़िन्दगी इतना अगर दे तो ये काफ़ी है ’अना’
सर से चादर न हटे पाँव भी चादर में रहे
<
/
poem>
{{KKMeaning}}
वीरेन्द्र खरे अकेला
265
edits