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बसंती हवा / केदारनाथ अग्रवाल
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13:53, 25 अगस्त 2006
अनोखी हवा हूँ।<br>
बड़ी बावली हूँ,<br>
बड़ी
मस्त्मौला।
मस्तमौला।
<br>
नहीं कुछ फिकर है,<br>
बड़ी ही निडर हूँ।<br>
उतरकर भगी मैं,<br>
हरे खेत पहुँची -<br>
वहाँ,
गेंहुँओं
गेहुँओं
में<br>
लहर खूब मारी।<br><br>
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घनश्याम चन्द्र गुप्त