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चा / रामजी लाल घोड़ेला 'भारती'
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10:03, 23 जनवरी 2015
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<poem>
बां बणा राख्यो
गुड़ री बणायी
आपरो अेक रुटीन
मीठी चा
दारू पीवण जांवतो
सगळी पीग्यो बाबो
रोज आथण कैंटीन।
देखती रैयगी मां।
</poem>
आशिष पुरोहित
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