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मून / राजू सारसर ‘राज’

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|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना / राजू सारसर ‘राज’
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<poem>
म्हारौ मून
नीं है समरपण
है पण थारै
सैंग सुवालां रो पडूतर
मिंदरा-गिरजां में पराथना
गुरदवारै में अरदास
मसीत में दुआ
है स्सौ कीं
म्हारो मून।
थारी अणचावी
बातां रै खिलाफ
म्हारै मूक सबदां रो विद्रोह
हियै भर संकळप
परण पूरवा री अभिलाखा
बादळां भांत
छायौड़ै उमाव रो धीजौ
अंतस री पीड़ नैं
पी जावण
संवेदणा नै सै’लावण री
अभिलाखा
सरस जीवण री परिभासा
थानैं नीं सुणाीजै
नीं सरी
मै’सूस तो
कर ई सकै
मून सबद।
बता, थनैं
कांई चाहिजै?
म्हारो मून है
थारै सैंग सुवालां
रो पडूतर।
</poem>
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