979 bytes added,
07:55, 29 जनवरी 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना / राजू सारसर ‘राज’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
म्हानैं
बगत नीं मिल्यौ
पाच्छौ बावडनैं रो
आगै बधणैं री
आजादी ई खुसगी
कुण धरग्यौ
अै दो पाट
थारै हठ
म्हारी हूंस रा
जिणां बिचाळै किचरीज’र
लोई-झ्याण होय’र
मरणासण
पड्या बाट न्हाळै
छेहळी हेली री
म्हारै पांती सुपना
म्हारै पण बोलणैं माथै
लाग्यौडी है अणचावी पाबंदी।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader