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{{KKRachna
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
निजरां सूं कीं कैवणौ
मूण्डै सूं कीं
कैवण सूं बतौ हुवै
असरदार
म्हैं सीखग्यौ।
म्हैं जाणग्यौ
के रात रै अंधारै में
न्हायोड़ी धरती
जे चंदरमा सूं मांग लेवै
मुट्ठी भर उजियाळौ
तो चंदरमा
मूण्डौ फेर’र खिसक जावै
अर घणी बार
बो ई चंदरमा
दिन थकै ई आय धमकै
धरती री छाती पर
अणमांवातौ
उजियाळौ ले’र।
</poem>